बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान प्रथम प्रश्नपत्र - उच्चतर पोषण एवं संस्थागत प्रबन्धन एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान प्रथम प्रश्नपत्र - उच्चतर पोषण एवं संस्थागत प्रबन्धनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान प्रथम प्रश्नपत्र - उच्चतर पोषण एवं संस्थागत प्रबन्धन
प्रश्न- आण्विक संरचना के आधार पर कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण किस प्रकार किया जा सकता है? विस्तारपूर्वक लिखिए।
अथवा
कार्बोहाइड्रेट की आण्विक संरचना व वर्गीकरण के बारे में विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर -
कार्बोहाइड्रेट की आण्विक रचना व संगठन (Molecular Structure & Composition of Carbohydrates
कार्बोहाइड्रेट कार्बन, हाइड्रोजन व ऑक्सीजन के रासायनिक संयोग से बनने वाला शर्करा का एक यौगिक है। साधारण कार्बोहाइड्रेट के एक अणु में 6 परमाणु कार्बन के, 12 परमाणु हाइड्रोजन के तथा 6 परमाणु ऑक्सीजन के संयुक्त होते हैं। कार्बोहाइड्रेट में हाइड्रोजन व ऑक्सीजन का अनुपात 2: 1 का होता है इसलिए कार्बोहाइड्रेट को Hydrate of Carbon अर्थात् कार्बोहाइड्रेट नाम दिया जाता है।
कार्बोहाइड्रेट को पोलीहाइड्रिक एल्कोहल के एल्डिहाइड अथवा कीटोन व्युत्पन्न (derivatives) भी कहा जाता है।
(Carbohydrates may be defined as the aldehyde or ketone derivatives of polihydric alcohols).
(1) मोनो- सैक्राइड्स (Mono - Saccharides)
यह कार्बोहाइड्रेट की सरलतम इकाई है। इन रासायनिक इकाइयों के संयोजन से जटिल कार्बोहाइड्रेट अणु बनते हैं। मोनो-सैक्राइड की यह विशेषता है कि उद्विच्छेदित (Hydrolysis) की क्रिया करके उन्हें और विभक्त नहीं किया जा सकता। सामान्यतः मोनो- सैक्राइड्स को हेक्सोज (Hexoses) भी कहते हैं। इसका कारण यह है कि यह 6 कार्बन परमाणुओं की श्रृंखला द्वारा निर्मित होते हैं। सभी हेक्सोजेज में कार्बन व ऑक्सीजन के 6 परमाणु तथा हाइड्रोजन के 12 परमाणु सामान्य रूप से पाये जाते हैं। इस प्रकार इनका सामान्य सूत्र C6H1206 है।
सरल कार्बोहाइड्रेट ग्लूकोज व फ्रक्टोज के आण्विक व रासायनिक सूत्र इस प्रकार हैं-
मोनो-सैक्राइड्स के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-
(i) ग्लूकोज (Glucose - )रासायनिक दृष्टि से कार्बोहाइड्रेट की सबसे सरल इकाई ग्लूकोज है। चीनी की अपेक्षा कुछ कम मीठा, पानी में घुलनशील व विसारशील है। सभी कार्बोहाइड्रेट पाचन के बाद अन्ततः ग्लूकोज में परिवर्तित होते हैं। कार्बोहाइड्रेट मुख्य रूप से ग्लूकोज के रूप में ही रक्त द्वारा अवशोषित किया जाता है। यह रक्त शर्करा भी कहलाती है, क्योंकि यह शर्करा रक्त प्लाज्मा व रक्त कणिकाओं में सामान्य रूप से पायी जाती है।
सामान्य स्वस्थ व्यक्ति के रक्त में 100 मिली में 80-120 मिग्रा तक ग्लूकोज की मात्रा रहती है। खाना खाने के तुरन्त बाद यह मात्रा बढ़ जाती है जो धीरे-धीरे सामान्य हो जाती है। शरीर में आवश्यकता से अधिक ग्लूकोज की मात्रा यकृत व माँसपेशियों के ग्लाइकोजन के रूप में संग्रहित कर ली जाती है। आवश्यकता पड़ने पर यह संग्रहित ग्लायकोजन पुनः ग्लूकोज में विघटित कर लिया जाता है। ग्लायकोजन का संश्लेषण व विघटन यकृत में ही होता है। हमारे शरीर की ऊर्जा का बड़ा भाग ग्लूकोज द्वारा ही प्राप्त होता है। परन्तु ग्लूकोज की अधिक उपस्थिति रक्त में होने पर मधुमेह (Diabetes) नामक रोग भी हो जाता है।
ग्लूकोज की उपस्थिति मीठे पके हुए फल जैसे अंगूर, शहद, गाजर, शलजम व शकरकन्द आदि में होती है। ग्लूकोज को अंगूर की शर्करा के रूप में भी जाना जाता है। ग्लूकोज की विशेषता है कि सरलतम रूप होने के कारण शीघ्र ही रक्त द्वारा शोषित होकर ऊर्जा प्रदान करता है। इसी कारण दुर्बल या बीमार लोगों या मूच्छित अवस्था में इसे देने से व्यक्ति को शीघ्र ही लाभ होता है।
(ii) फ्रक्टोज (Fructose) - ग्लूकोज के समान ही यह भी एक सरल कार्बोज है, परन्तु ग्लूकोज से यह कुछ अधिक मीठी होती है। यह भी ठोस रवेदार व पानी में घुलनशील है। इसको फल शर्करा (Fruit Sugar) भी कहते हैं। ग्लूकोज के समान पके फल, पौधे का रस व शहद आदि फ्रक्टोज की प्राप्ति के मुख्य स्रोत हैं। गन्ने की शर्करा जिसे सुक्रोज कहते हैं, पाचन के बाद के एक अणु ग्लूकोज व एक अणु फ्रक्टोज में परिवर्तित होती है। फ्रक्टोज भी ग्लूकोज की भाँति ग्लायकोजन के रूप में संचित हो जाता है।
(2) डाइ-सैक्राइड्स (Di-Saccharides)
मोनो सैक्राइड्स की दो इकाइयों को मिलकर डाइ - सैक्राइड्स की एक इकाई की रचना होती हैं। इसलिए इन्हें दुहरी शर्करा या द्वि-शर्करा (Double Sugar) भी कहते हैं। इसका रासायनिक सूत्र C12H22O11 है। जलीय अपघटन (Hydrolysis) की क्रिया के फलस्वरूप डाइ-सैक्राइड की दोनों इकाइयाँ पृथक्-पृथक् हो जाती हैं व दोनों मोनो-सैक्राइड प्राप्त हो जाते हैं।
डाइ-सैक्राइड जल में घुलनशील व रवे बनाने की क्षमतायुक्त होते हैं। इन कार्बोहाइड्रेट में मोनो- सैक्राइड की अपेक्षा मिठास अधिक होती है। डाइ-सैक्राइड के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-
(i) सुक्रोज (Sucrose) - सुक्रोज का गन्ने या चुकन्दर की शर्करा भी कहते हैं। जो शक्कर या चीनी हम दैनिक प्रयोग में लाते हैं वह रासायनिक रूप से सुक्रोज ही है। पाचक एन्जाइम या जलीय अपघटन (Hydrolysis) की क्रिया द्वारा सुक्रोज का 1 अणु ग्लूकोज व 1 अणु फ्रक्टोज में. विघटित हो जाता है।
पाचन नाल में सुक्रोज का पाचन ग्लूकोज व फ्रक्टोज के रूप में होता है और तभी वह कोशिकाओं द्वारा अवशोषित करके शरीर हेतु प्रयुक्त किया जाता है। सुक्रोज की उपस्थिति गन्ने, चुकन्दर व ताड़ आदि में होती है।
(ii) माल्टोज (Maltose) - माल्टोज अंकुरित अनाजों (जैसे जवा), माल्टयुक्त धान्य व दूध आदि में पाया जाता है। इसे जवा शर्करा भी कहते हैं। जब शरीर में पॉली-सैक्राइड स्टार्च का पाचन होता है तो मध्यवर्ती पदार्थ के रूप में माल्टोज बनता है जिसका अन्ततः ग्लूकोज के रूप में पाचन होता है। माल्टोज पर पाचक एन्जाइम की (डायस्टेज) क्रिया से 2 अणु मोनो-सैक्राइड या ग्लूकोज के बनते हैं। ये दोनों अणु ग्लूकोज के ही (एक से) होते हैं।
(iii) लैक्टोज (Lactose) - लैक्टोज सभी स्तनधारियों के दूध में उपस्थित रहता है। इसलिए इसे दुग्ध शर्करा भी कहते हैं। लैक्टोज अम्ल तत्वों द्वारा उद्विच्छेदित हो जाता है जिसके कारण दूध का स्वाद प्रभावित होता है। यह डाइ- सैक्राइड पाचन के फलस्वरूप 1 अणु ग्लूकोज व 1 अणु गैलेक्टोज में विभक्त हो जाता है।
लैक्टोज = ग्लूकोज + गैलक्टोज
(3) पॉली-सैक्राइड्स (Poly Saccharides)-
पॉली-सैक्राइड्स 3 या 3 से अधिक मोनो-सैक्राइड्स की इकाइयों से मिलकर बनता है। इसका रासायनिक सूत्र (C6H10O5)n है। n अणुओं की संख्या को प्रदर्शित करता है। ये जटिल कार्बोहाइड्रेट हैं। इनका अणु भार भी अधिक होता है। यह पानी में अघुलनशील व स्वाद में फीके होते हैं। इनका कोई निश्चित आकार नहीं होता।
पॉली-सैक्राइड्स ग्लूकोज अणुओं की लम्बी शृंखला के जुड़ने से बनते हैं। एक पॉली सैक्राइड में 2000 या इससे भी अधिक ग्लूकोज अणु संयुक्त हो सकते हैं। अत्यधिक जटिल रचना होने के कारण कार्बोज के स्थान पर इन्हें स्टार्च ही अधिक कहा जाता है। मुख्य पॉली-सैक्राइडस अग्र प्रकार है-
(i) स्टार्च (Starch) - स्टार्च के रूप में पौधे अपने अन्दर कार्बोहाइड्रेट को संचित कर लेते हैं। इस तरह जो भोजन हम पौधों से प्राप्त करते हैं, उनमें स्टार्च बहुतायत में रहता है। यह जड़, कन्द, बीज व फलों में पाया जाता है। स्टार्च ताप, अम्ल व पाचक एन्जाइम के प्रभाव से डेक्सट्रिन में परिवर्तित हो जाता है। यह डेक्सट्रिन स्टार्च को ग्लूकोज में बदलने की मध्यवर्ती + स्थिति है। स्टार्च विश्लेषण के अन्तिम रूप में ग्लूकोज ही बनता है।
स्टार्च ठण्डे पानी में अविलेय होते हैं, परन्तु उबलते पानी में डालने से इनकी कोशिका की बाह्य भित्ति फट जाती है। अन्दर से नन्हे नन्हे स्टार्च कण निकलकर पानी में आ जाते हैं जल शोषित कर वे स्टार्च कण फूल जाते हैं और लेई के समान गाढ़ा-सा पदार्थ बना लेते हैं। यह क्रिया जिलेटिनीकरण (Gelatinization) कहलाती है।
(ii) ग्लायकोजन (Glycogen) - शरीर में आवश्यकता से अधिक कार्बोज, ग्लायकोजन के रूप में संग्रहित रहती है। ग्लायकोजन को जन्तु स्टार्च भी कहते हैं। इसका कारण यह है कि इसकी शरीर में वही उपयोगिता है जो स्टार्च की पेड़ों में होती है। यह ऊर्जा का संचित भण्डार है। ग्लायकोजन की उपस्थिति यकृत व माँसपेशियों में रहती है। यदि शरीर की आवश्यकता ऊर्जा की पूर्ति भोजन से नहीं हो पाती तब यह संचित ग्लायकोजन विघटित होकर ऊर्जा देने का कार्य करता है।
(iv) सैल्यूलोज (Cellulose) - यह भी एक जटिल कार्बोज है जो कि अघुलनशील व अपाच्य होता है। यह पौधों को आकार व रूप प्रदान करता है। इनका पेड़-पौधों के लिए वही महत्व है जो मानव शरीर में हड्डियों का होता है। मानव शरीर के पाचन अंगों में सैल्यूलोज को पचाने वाले एन्जाइम नहीं होते। अन्य शाकाहारी जन्तुओं जैसे गाय, घोड़ा, बकरी, खरगोश व ऊँट इत्यादि में सैल्यूलोज का पाचन करने वाले एन्जाइम रहते हैं जो इनका पाचन ग्लूकोज में कर देते हैं। यद्यपि मानव के लिए सैल्यूलोज का कोई पोषक मूल्य नहीं है फिर भी भोजन में इसकी उपस्थिति लाभदायक है क्योंकि यह भोजन को भार प्रदान करता है। इसमें प्रायः रेशे रहते हैं इसलिए इसे रफेज (Roughage) कहते हैं। यह आमाशय व आँत की माँसपेशियों की संकुचन की गति को तीव्रता प्रदान करता है जिससे भोजन पचकर आसानी से बाहर निकल जाता है और कब्ज की सम्भावना नहीं रहती।
(iv) पैक्टिन (Pectin) - पैक्टिन पके हुए फल जैसे सेब, अमरूद व शलजम, मैथी इत्यादि सब्जियों में पाया जाता है। हल्के अम्लीय माध्यम में चीनी के साथ तरल अवस्था में पकाने पर यह जैली के रूप में आ जाता है। इसी विशेषता के कारण जैम या जैली बनाने के लिए पैक्टिन का उपयोग करते हैं। पैक्टिन की शरीर में उपयोगिता का कोई संकेत नहीं मिला है।
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